जोड़ व हड्डी रोग

जोड़ व हड्डी रोग


संधि शोथ (आर्थराइटिस)

संधि शोथ का अर्थ है "जोड़ों में दर्द"। यह उस 170 जोड़ों की बीमारी के संबंध में है जहां जोड़ों में दर्द, अकड़न या सूजन (वर्तमान में हो या न हो) आ जाती है।
सामान्यतः 3 प्रकार के संधि शोथ(आर्थराइटिस) होते हैं:
1.    गठिया ग्रस्त
2.    अस्थि संधि शोथ (आर्थराइटिस)
3.    गठिया
संधि शोथ(आर्थराइटिस) के लक्षणः
  • जोड़ों में दर्द या नरमी (दर्द या दबाव) जिसमें चलते समय, कुर्सी से उठते समय, लिखते समय, टाइप करते समय, किसी वस्तु को पकड़ते समय, सब्जियां काटते समय आदि जैसे हिलने डुलने की क्रियाओं में स्थिति काफी बिगड़ जाती है।
  • शोथ जो जोड़ों के सूजन, अकड़न, लाल हो जाने और/या गर्मी से दिखाई पड़ता है।
  • विशेषकर सुबह-सुबह अकड़न
  • जोड़ों के लचीलेपन में कमी
  • जोड़ों को ज्यादा हिला डुला नहीं सकना
  • जोड़ों की विकृति
  • वजन घटना और थकान
  • अविशिष्ट बुखार
  • खड़-खड़ाना (चलने पर संधि शोथ वाले जोड़ों की आवाज)
संधि शोथ की बीमारी का प्रबंधन किस प्रकार करें?
  • संधि शोथ(आर्थराइटिस) की बीमारी की विवेकपूर्ण प्रबंधन और प्रभावी उपचार से अच्छी तरह जीवन-यापन किया जा सकता है।
  • संधि शोथ(आर्थराइटिस) बीमारी के विषय में जानकारी रखकर और उसके प्रबंधन से विकृति तथा अन्य जटिलताओं से निपटा जा सकता है।
  • रक्त परीक्षण और एक्स-रे की सहायता से संधि शोथ(आर्थराइटिस) की देखरेख की जा सकती है।
  • डॉक्टर के परामर्श के अनुसार दवाइयां नियमित रूप से लें।
  • शारीरिक वजन पर नियंत्रण रखें।
  • स्वास्थ्यप्रद भोजन करें।
  • डॉक्टर द्वारा दिये गये निर्देशों के अनुसार नियमित व्यायाम करें।
  • नियमित व्यायाम करें तथा तनाव मुक्त रहने की तकनीक अपनाएं, समुचित विश्राम करें, अपने कार्यों को योजनाबद्ध तरीके से पूरा करके तनाव से मुक्त रहें।
  • औषधियों के प्रयोग में अनुपूरक रूप में योग तथा अन्य वैकल्पिक रोग के उपचारों को वैज्ञानिक तरीके से लिपिबद्ध किया गया है।

घुटनों का दर्द

कारणः
घुटनों का दर्द निम्नलिखित कारणों से हो सकता हैः
  • आर्थराइटिस- लूपस जैसा- रीयूमेटाइड, आस्टियोआर्थराइटिस और गाउट सहित अथवा संबंधित ऊतक विकार
  • बरसाइटिस- घुटने पर बार-बार दबाव से सूजन (जैसे लंबे समय के लिए घुटने के बल बैठना, घुटने का अधिक उपयोग करना अथवा घुटने में चोट)
  • टेन्टीनाइटिस- आपके घुटने में सामने की ओर दर्द जो सीढ़ियों अथवा चढ़ाव पर चढ़ते और उतरते समय बढ़ जाता है। यह धावकों, स्कॉयर और साइकिल चलाने वालों को होता है।
  • बेकर्स सिस्ट- घुटने के पीछे पानी से भरा सूजन जिसके साथ आर्थराइटिस जैसे अन्य कारणों से सूजन भी हो सकती है। यदि सिस्ट फट जाती है तो आपके घुटने के पीछे का दर्द नीचे आपकी पिंडली तक जा सकता है।
  • घिसा हुआ कार्टिलेज (उपास्थि)(मेनिस्कस टियर)- घुटने के जोड़ के अंदर की ओर अथवा बाहर की ओर दर्द पैदा कर सकता है।
  • घिसा हुआ लिगमेंट (ए सी एल टियर)- घुटने में दर्द और अस्थायित्व उत्पन्न कर सकता है।
  • झटका लगना अथवा मोच- अचानक अथवा अप्राकृतिक ढंग से मुड़ जाने के कारण लिगमेंट में मामूली चोट
  • जानुफलक (नीकैप) का विस्थापन
  • जोड़ में संक्रमण
  • घुटने की चोट- आपके घुटने में रक्त स्राव हो सकता है जिससे दर्द अधिक होता है
  • श्रोणि विकार- दर्द उत्पन्न कर सकता है जो घुटने में महसूस होता है। उदाहरण के लिए इलियोटिबियल बैंड सिंड्रोम एक ऐसी चोट है जो आपके श्रोणि से आपके घुटने के बाहर तक जाती है।
घर में देखभाल
  • घुटने के दर्द के कई कारण है, विशेषकर जो अति उपयोग अथवा शारीरिक क्रिया से संबंधित है। यदि आप स्वयं इसकी देखभाल करें तो इसके अच्छे परिणाम निकलते हैं।
  • आराम करें और ऐसे कार्यों से बचे जो दर्द बढ़ा देते हैं, विशेष रूप से वजन उठाने वाले कार्य
  • बर्फ लगाएं। पहले इसे प्रत्येक घंटे 15 मिनट लगाएं। पहले दिन के बाद प्रतिदिन कम से कम 4 बार लगाएं।
  • किसी भी प्रकार की सूजन को कम करने के लिए अपने घुटने को यथा संभव ऊपर उठा कर रखें।
  • कोई ऐसा बैंडेज अथवा एलास्टिक स्लीव पहनकर घुटने को धीरे धीरे दबाएं। ये दोनों वस्तुएं लगभग सभी दवाइयों की दुकानों पर मिलती है। यह सूजन को कम कर सकता है और सहारा भी देता है।
  • अपने घुटनों के नीचे अथवा बीच में एक तकिया रखकर सोएं।

सरविकल स्पांडिलाइसिस

गर्दन के आसपास के मेरुदंड की हड्डियों की असामान्य बढ़ोतरीऔर सरविकल वर्टेब के बीच के कुशनों (इसे इंटरवटेबल डिस्क के नाम से भी जाना जाता है) में कैल्शियम का डी-जेनरेशन, बहिःक्षेपण और अपने स्थान से सरकने की वजह से सरविकल स्पांडिलाइसिस होता है। प्रौढ़ और बूढ़ों में सरविकल मेरुदंड में डी-जेनरेटिव बदलाव आम बात है और सामान्यतया इसके कोई लक्षण भी नहीं उभरते। वर्टेब के बीच के कुशनों के डी-जेनरेशन से नस पर दबाव पड़ता है और इससे सरविकल स्पांडिलाइसिस के लक्षण दिखते हैं। सामान्यतः 5वीं और 6 ठी (सी5/सी6), 6ठी और 7वीं (सी6/सी7) और 4थी और 5वीं (सी4/सी5) के बीच डिस्क का सरविकल वर्टेब्रा प्रभावित होता है
लक्षणः
सरविकल भाग में डी-जेनरेटिव परिवर्तनों वाले व्यक्तियों में किसी प्रकार के लक्षण दिखाई नहीं देती या असुविधा महसूस नहीं होती। सामान्यतः लक्षण तभी दिखाई देते हैं जब सरविकल नस या मेरुदंड में दबाव या खिंचाव होता है। इसमें निम्नलिखित समस्याएं भी हो सकती हैं-
  • गर्दन में दर्द जो बाजू और कंधों तक जाती है
  • गर्दन में अकड़न जिससे सिर हिलाने में तकलीफ होती है
  • सिर दर्द विशेषकर सिर के पीछे के भाग में (ओसिपिटल सिरदर्द)
  • कंधों, बाजुओं और हाथ में झुनझुनाहट या असंवेदनशीलता या जलन होना
  • मिचली, उल्टी या चक्कर आना
  • मांसपेशियों में कमजोरी या कंधे, बांह या हाथ की मांसपेशियों की क्षति
  • निचले अंगों में कमजोरी, मूत्राशय और मलद्वार पर नियंत्रण न रहना (यदि मेरुदंड पर दबाव पड़ता हो)
प्रबंधनः
उपचार का उद्देश्य है-
  • नसों पर पड़ने वाले दबाव के लक्षणों और दर्द को कम करना
  • स्थायी मेरुदंड और नस की जड़ों पर होने वाले नुकसान को रोकना
  • आगे के डी-जनरेशन को रोकना
इसे निम्नलिखित उपायों से प्राप्त किया जा सकता है-
  • गर्दन की मांस पेशियों को सुदृढ़ करने के लिए किये गये व्यायाम से लाभ होता है, किंतु ऐसा चिकित्सक की देख-रेख में ही की जाए। फिजियोथेरेपिस्ट से ऐसा व्यायाम सीखकर घर पर इसे नियमित रूप से करें।
  • सरविकल कॉलर - सरविकल कॉलर से गर्दन के हिलने डुलने को नियंत्रित कर दर्द को कम किया जा सकता है।

गठिया संधि शोथ

इस रोग के आरंभिक अवस्था में जोड़ों में जलन होती है। शुरू-शुरू में यह काफी कम होती है। यह जलन एक समय में एक से अधिक संधियों (जोड़ों) में होती है। शुरुआत में छोटे-मोटे जोड़ जैसे- उंगलियों के जोड़ों में दर्द आरंभ होकर यह कलाई, घुटनों, अंगूठों में बढ़ता जाता है।
कारण-
गठिया संधि शोथ होने का सही कारण अभी तक पता नहीं चला है, जेनेटिक पर्यावरण और हार्मोनल कारणों की वजह से होने वाले ऑटोइम्यून प्रतिक्रिया से जलन शुरु होकर बाद में यह संधियों की विरूपता और उन्हें नष्ट करने का कारण बन जाती हैं। (शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रणाली अपनी ही कोशिकाओं को पहचान नहीं पाती हैं और इसलिए उसे संक्रमित कर देती है)।
आनुवांशिकी कारक की वजह से रोग के होने की संभावना बनी रहती हैं। यह रोग पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती है।
कुछ व्यक्तियों में पर्यावरणीय कारणों से भी यह रोग हो सकता है। कई संक्रामक अभिकरणों का पता चला है।
रोग के बढ़ने या कम होने में हार्मोन विशेष भूमिका निभाते हैं। महिलाओं में रजोनिवृति के दौरान ऐसे मामले अधिकतर देखने में आते हैं।
जोखिम कारक -
आयुः हालांकि यह रोग कभी भी हो सकता है परंतु 20-40 वर्ष के आयु वालों में यह रोग ज्यादा देखने में आया है।
लिंगः महिलाओं, विशेषकर रजोनिवृत्ति को प्राप्त करने वाली महिलाओं में यह रोग पुरुषों की तुलना में तीन गुना अधिक पाया जाता है।
प्रबंधनः
प्रबंधन का उद्देश्य है-
  • जलन और दर्द को कम करना
  • रोग को बढ़ने से रोकना
  • जोड़ों के संचलन को बनाए रखना और उन्हें विकृत होने से रोकना
शारीरिक व्यायाम, दवाइयां और आवश्यक हुआ तो सर्जरी इन तीनों के द्वारा उपरोक्त को प्राप्त किया जा सकता है।
शारीरिक व्यायाम -
  • जोड़ों को आराम देने से दर्द में राहत मिलती है। मांस-पेशियों की जकड़न को दूर किया जा सकता है। जोड़ों को आराम पहुंचाने के लिए उन्हें बांध ले जिससे जोड़ों की गतिशीलता और संकुचन को रोका जा सके। जोड़ों को सहारा देने के लिए वाकर, लकड़ी आदि के सहारे चलें।
  • जोड़ों की गतिशीलता को बनाये रखने और दर्द और जलन को बिना बढ़ाये, कोशिका को मजबूत करने के लिए व्यायाम प्रबंधन एक महत्वपूर्ण अंग हैं। रोगी की स्थिति के आधार पर डॉक्टर द्वारा सुझाये गये व्यायाम करें
  • रोगग्रस्त जोड़ों के निचले अंगों के तनाव को कम करने के लिए आदर्श वजन बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है।

गठिया

गठिया का रोग मसालेदार भोजन और शराब पीने से संबद्ध है। यह रोग पाचन क्रिया से संबंधित है। इसके संबंध खून में मूत्रीय अम्ल का अत्यधिक उच्च मात्रा में पाये जाने से होता है। इसके कारण जोड़ों (प्रायः पादागुष्ठ (ग्रेट टो) में तथा कभी कभी गुर्दे में भी क्रिस्टल भारी मात्रा में बढ़ता है।
गठिया में क्या होता है?
यूरिक अम्ल मूत्र की खराबी से उत्पन्न होता है। यह प्रायः गुर्दे से बाहर आता है। जब कभी गुर्दे से मूत्र कम आने (यह सामान्य कारण है) अथवा मूत्र अधिक बनने से सामान्य स्तर भंग होता है, तो यूरिक अम्ल का रक्त स्तर बढ़ जाता है और यूरिक अम्ल के क्रिस्टल भिन्न-भिन्न जोड़ों पर जमा (जोड़ों के स्थल) हो जाते है। रक्षात्मक कोशिकाएं इन क्रिस्टलों को ग्रहण कर लेते हैं जिसके कारण जोड़ों वाली जगहों पर दर्द देने वाले पदार्थ निर्मुक्त हो जाते हैं। इसी से प्रभावित जोड़ खराब होते हैं
स्रोत: Himani Healthcare Center 

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