महत्वपूर्ण जानकारी..
क्या आपको पता है जिस Hindustan Lever Limited  के सौंदर्य प्रशासन आप आज खरीद रहे हो यह ब्रिटेन के दो भाई लीवर ब्रदर्स की कंपनी है जिन्होंने 1898  मैं मेरठ के अंदर पहला कारखाना लगाया था इस कारखाने में नहाने का साबुन बनाया नही गया बल्कि लीवर ब्रदर्स अन्य देशों से साबुन लाकर यहां सप्लाई करते थे, आप यूं कह सकते हो कि भारत में साबुन से नहाने का का प्रयोग 1898 मैं किया था..!
मगर यह साबुन सिर्फ अंग्रेजों को और राजे महाराजाओं को ही दिया जाता था आम जनता को साबुन नहीं दिया जाता, ब्रिटिश सेना में जो हमारे भारतीय सैनिक थे उन्हें हर महीने एक साबुन दिया जाता था.!
भारत के कई बड़े व्यापारी  को यह बात अच्छी नहीं लगी उन्हीं में से एक थे रतन टाटा के दादाजी जमशेद जी टाटा  उन्होंने इस कंपनी को टक्कर देने के लिए स्वदेशी कंपनी लाने की योजना बनाई जिसके  product पर हर भारतीय का अधिकार हो ..।
यही सोचकर उन्होंने मैसूर के शासक कृष्‍णा राजा वाडियार से मुलाकात की और उनसे कहा कि आप एक स्वदेशी फैक्ट्री लगाएं और एक फैक्ट्री में लगाता हूं साबुन का फार्मूला मैं आपको देखता हूं तब मैसूर के राजा ने 1916 में बेंगलुरु में मैसूर सैंडल सॉप कंपनी की स्थापना की और पहला स्वदेशी साबुन भारत में बना।  मगर उस समय प्रथम विश्व युद्ध चल रहा था इसलिए इसकी बिक्री 1918 में हुई..!
इस साबुन की खासियत है कि इससे अगर एक बार कोई नहाले तो 2 दिन तक इस साबुन की महक उसके शरीर से नहीं जाती है, क्योंकि यह चंदन से बना साबुन है  और आज भी ब्रिटेन की महारानी इसी साबुन से नहाती है यह भारत का लग्जरी शाही साबुन है..!
प्रथम विश्व युद्ध के बाद भारत में  त्वचा संबंधी रोग फैला था,  इसी को ध्यान में रखकर 1918 में जमशेद टाटा ने केरल में नीम का साबुन बनाया था, उसका नाम बाद में हमाम पड़ा था। जमशेद टाटा ने उस वक्त यह साबुन गरीबों को मुफ्त बांटे थे ताकि वह बीमारी से ठीक हो जाये।
मैसूर सैंडल सॉप और हमाम साबुन उस वक्त भारत में इतने ज्यादा बीके कि लीवर ब्रदर्स कंपनी को उस वक्त लाखों रुपए का नुकसान हुआ था।
तो अंग्रेजों ने लीवर ब्रदर्स को बचाने के लिए इन साबुन पर रोक लगा दी थी,  अंग्रेजों का यह प्लान सफल नहीं हुआ इसीलिए अंग्रेजों ने अपनी सेना और उनके परिवारों के लिए लीवर ब्रदर्स के साबुन को अनिवार्य कर दिया..!
 लीवर ब्रदर्स के लिए ट्रांसपोर्टेशन महंगा पड़ रहा था इसलिए उसने भी भारत में ही साबुन बनाने का काम शुरू किया।  और उसके बाद उसने ब्रिटिश सेना की मदद से अपना प्रचार करवाया और अपने घाटे की भरपाई की। मगर 1931 में भगत सिंह को फांसी दिए जाने के बाद  फिर से लोग स्वदेशी की तरफ आ गए, और यह दोनों साबुन इतने प्रसिद्ध हुए की भारत से एक्सपोर्ट होने लग गए.!
जमशेद टाटा दूरदर्शी व्यक्ति थे वे भारत को आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे इसीलिए उनके चार सपने थे पहला स्टील का कारखाना भारत में लगाना,  दूसरा आवागमन के लिए साधन बनाना तीसरा पानी से बिजली बनाना और चौथा होटल बनाना.! मगर जमशेदजी अपनी उम्र में सिर्फ एक सपना ही पूरा कर सके थे वह था होटल बनाना जो मुंबई में आज भी ताज होटल के नाम से विख्यात है.!
यह देश का पहला होटल है जिसमें बिजली थी हर कमरे में पंखे अमेरिका से मंगवा कर लगाए थे.!  यह होटल भी जिद की वजह से बनाया था जब जमशेद टाटा विदेश गए थे तो उन्हें होटल में नहीं रुकने दिया गया था क्योंकि वह भारतीय काले इंसान थे और होटल अंग्रेज गौरो का था  मजबूरी वश उन्हें विदेश में सड़क पर सोना पड़ा, 12 दिन विदेश में रुकने के बाद भारत आकर उन्होंने सर्वप्रथम होटल बनाया। जमशेद टाटा के बाकी के तीनों सपने उनके बेटे और पोते ने पूरे किए।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि प्रथम विश्व युद्ध में दर्द की कोई गोली नहीं थी जमशेद टाटा ने चाइना से अफीम मंगवा कर अंग्रेजों को दी थी।
जमशेद टाटा लीगल तरीके से भारत के पहले अफीम आयात करने वाले व्यक्ति बने थे।
इसके बाद इसी अफीम से दर्द निवारक गोलियां बनी और भारत में अफीम पैदा होने लगी, इसका भी श्रेय जमशेद टाटा जी को ही जाता है।
लोग चाहे रामदेव बाबा का मजाक उड़ाए,  मगर यह सत्य है कि जमशेद टाटा के बाद विदेशी कंपनियों को टक्कर रामदेव बाबा ने ही दी है।
भारत में पहली कार भी जमशेद टाटा ने ही खरीदी थी।
 और भारत में पहला आवागमन का साधन बस और ट्रक टाटा ने ही भारत को दिया है।
जब भी भारत में संकट आता है तब भारत के व्यापारी और भारतीय कंपनियां ही मदद के लिए आगे आती हैं अतः आप सभी से विनती है कि स्वदेशी अपनाएं और भारत को आत्मनिर्भर बनाने में सहयोग करें।
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