जालौर (राजस्थान) जिले में स्थित भीनमाल शहर का इतिहास बड़ा ही गौरवशाली रहा है

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जालौर (राजस्थान) जिले में स्थित भीनमाल शहर का इतिहास बड़ा ही गौरवशाली रहा है, लेकिन बहुत सदियों पहले। भीनमाल नगर की स्थापना किसने तथा कब की, इसका कोई ठोस प्रमाण या सर्वसम्मत मत उपलब्ध नहीं है। 'गुर्जरदेश' की राजधानी हुआ करता था भीनमाल। यहां चावड़ा, प्रतिहार, सोलंकी, परमार, चालुक्य, वाघेला आदि वंश के राजाओं ने राज किया। भीनमाल के कई शासक रहे, बदलते रहे और किसी एक वंश का लंबे समय तक यहां साम्राज्य नहीं रहा। कुल मिलाकर बड़ा अस्पष्ट-सा इतिहास है भीनमाल का। मैंने कड़ियां जोड़ने की खूब कोशिश की लेकिन जोड़ नहीं पाया।

भीनमाल ने कई उत्थान-पतन देखे हैं। इतिहास व जनश्रूतियों के अनुसार यह नगर चार बार नष्ट हुआ। बताते हैं कि इस इलाके में भीलों की बस्तियां हुआ करती थी इसलिए इसका शुरुआती नाम भिल्लमाला हुआ करता था। इसी उत्थान-पतन की वजह से भीनमाल के कई नाम हुए; पुष्पमाल, आलमाल, रत्नमाल, श्रीमाल, भील्लमाल, भीनमाल आदि।

भीनमाल न सिर्फ शताब्दियों तक पश्चिमी भारत का सबसे बड़ा शहर था बल्कि शिक्षा, व्यापार, गणित, ज्योतिष, खगोल, विज्ञान आदि का एक बहुत बड़ा केंद्र भी था। बताते हैं कि इस शहर का विस्तार 36 मील (करीब 60 किलोमीटर) के इलाके में था। नगर में हर तरफ जलाशय (तालाब/बावड़ी) आदि बने हुए थे। यात्रा वृतांतों और दूसरे दस्तावेजों में छठी/सातवीं सदी में भीनमाल की जनसंख्या लगभग 2 लाख बताई गई है और 900AD के आसपास भीनमाल पश्चिमी भारत का सबसे बड़ा शहर बताया गया है।

इतिहास के अनुसार 5वीं सदी में गुर्जरों ने भीनमाल को अपने साम्राज्य 'गुर्जरदेश' की राजधानी बनाया। छठी से नौंवी शताब्दी के बीच भीनमाल खूब फला-फूला। सातवीं सदी में गुर्जर-प्रतिहार राजपूतों की शक्ति का विकास दक्षिणी मारवाड़ में प्रारंभ हुआ था और इन्होंने अपने राजधानी भिन्नमाल में बनाई। भिन्नमाल के राजाओं में वत्सराज (775-800 AD) सबसे प्रतापी राजा था। बताते हैं कि वत्सराज ने बंगाल तक अपनी विजय पताका फहराई और वहाँ के पालवंशीय राजा धर्मपाल को युद्ध में पराजित किया। मालवा पर भी इसका शासन स्थापित हो गया था। लेकिन वत्सराज को राष्ट्रकूट नरेश राजध्रुव से पराजित होना पड़ा। मिहिरभोज (836-890AD) अपनी राजधानी भिन्नमाल से हटाकर कन्नौज में ले गया। इस तरह करीब100 वर्षों तक गुर्जर-प्रतिहारों की राजधानी रही।नौवीं शताब्दी तक श्रीमाल नगर गुजरात की राजधानी रहा ।

इस दौर में भीनमाल में विभिन्न मान्यताओं वाले धर्मो का विकास हुआ जिनमें जैन और बौद्ध धर्म शामिल हैं। इतिहास के स्रोतों में भीनमाल में एक बौद्ध विहार का जिक्र है जहां बौद्ध वास इलाके में 100 के करीब भिक्षु निवास किया करते थे। जैन धर्म से जुड़े प्रकांड विद्वानों ने कई ऐतिहासिक ग्रन्थों की रचना भीनमाल में की जिनकी फेहरिस्त बहुत लम्बी है। कहा जाता है कि 24वें जैन तीर्थंकर महावीर स्वामी ने भी इस इलाके में भ्रमण किया था हालांकि यह ईसा पूर्व से भी पहले की बात है।

भीनमाल के शिखर में दौर में यहां संस्कृत के महाकवि माघ भी हुए। 675AD में जन्मे मात्र एक रचना 'शिशुपालवध' से ही महाकवि की ख्याति हासिल ली। माघ के पिता राजा वर्मलात के मंत्री हुआ करते थे। राजा वर्मलात ने भीनमाल शहर, सोलंकी गोत्र और राजस्थान, गुजरात कई जातियों की आराध्य देवी क्षेमंकरी देवी की चरण पादुका के स्थान पर क्षेमकंरी मंदिर और प्रतिमा की स्थापना की थी जिसका उल्लेख बसंतगढ़ (वर्तमान सिरोही जिले में) के शिलालेख में आज भी विद्यमान है।

वहीं प्रसिद्ध ज्योतिष/खगोलविद ब्रह्मगुप्त ने 624AD के आसपास अपने ’ब्रह्मगुप्तसिद्धांत’ को यहीं रचा। उन्होने खुद को भीनमल्लाचार्य लिखा है।

प्रसिद्ध चीनी बौद्ध भिक्षु ह्वेन त्सांग 631-645AD की अपनी भारत यात्रा के वृतांत में भीनमाल (पि-लो-मो-लो) को पश्चिमी भारत के दूसरे सबसे बड़े साम्राज्य गुर्जरदेश की राजधानी बताता है।

गुर्जरदेश की सम्पन्नता के चलते यहां मोहम्मद बिन क़ासिम (712-715AD) और अल जुनैद (723-726) जैसे विदेशी आक्रांताओं के हमले भी हुए और उनके खास निशाने पर था al-Baylaman यानि भीनमाल।

अल जुनैद की सिंध में पराजय के बाद नागभट्ट प्रथम ने जालौर में एक नए साम्राज्य की स्थापना कर दी। दूसरी तरफ वनराज चावड़ा ने 746AD में पाटण (वर्तमान गुजरात) में नए साम्राज्य की नींव डाली और देखते ही देखते अन्हिलवाड़ा या पाटण गुजरात की सत्ता का केंद्र बन गया। यहां तक कि 1147 AD में महालक्ष्मीजी की मुख्य छवि/मूर्ति भी भीनमाल से पाटण ले जाई गई।

ऐसे कई घटनाक्रमों के चलते भीनमाल का नौवीं सदी से पतन शरू होने लग गया।
वजहें कई थीं -
1. प्रतिहारों द्वारा कन्नौज को सत्ता का केंद्र बना देना
2. वनराज चावड़ा द्वारा स्थापित पाटण का फलना-फूलना
3. पाटण की बढ़ती सम्पन्नता से श्रीमाली ब्राह्मणों और श्रीमाली वैश्यों का वर्तमान गुजरात की तरफ रुख कर जाना
4. भीनमाल के इलाके में बार-बार अकाल पड़ना और जलस्रोतों का सूख जाना। बताते हैं कि 9वीं सदी में भीनमाल शहर से बड़ी तादाद में पाटण की तरफ माइग्रेशन हुआ जिसकी बड़ी वजह लगातार अकाल और सुकड़ी नदी का सूख जाना था।
5. बताते हैं कि 972AD के आसपास भीनमाल परमार शासकों के कब्जे में था फिर 1100AD के आसपास चालुक्यों ने भी जालौर पर राज किया
6.1181AD में कीतू चौहान द्वारा जालोर में चौहान राजवंश (1160AD -1311AD) स्थापना से भीनमाल और कमजोर हो गया और 13वीं सदी में भीनमाल जालौर के चौहान शासकों के अधीन आ गया।

भीनमाल को सबसे बड़ा नुकसान दिल्ली में सल्तनत की स्थापना से हुआ। अलाउद्दीन खिलजी ने 1311AD के जालौर हमले के दौरान भीनमाल और सांचौर को भी लूटा। उस समय भीनमाल श्रीमाल के नाम से जाना जाता था और गोलाकार 84 दरवाजे वाला सम्पन्न शहर हुआ करता था।
बताते हैं कि आज भी भीनमाल से 5-6 मील दूर उत्तर की ओर जालोरी दरवाजा, पश्चिम की ओर सांचोरी दरवाजा, पूर्व की ओर सूर्य दरवाजा और दक्षिण की ओर लक्ष्मी दरवाजा के अवशेष पड़े दिखाई देते हैं। मैंने कभी नहीं देखे, देखने हैं..यदि सच में है तो।

इन तमाम हालातों में बीच भी भीनमाल की प्रसिद्धि एवं संपन्नता 14 -15 वीं सदी तक बनी रही। बताते हैं कि यहां के आखिरी

1707AD में औरंगजेब की मृत्यु के बाद मारवाड़ के राठौड़ शासकों ने जालौर, भीनमाल, सांचौर परगनों पर फिर से अपनी पकड़ मजबूत कर ली।

जोधपुर महाराजा भीम सिंह के समय (1793-1803) में जालौर उनके चचेरे भाई मान सिंह के अधीन था। लेकिन मान सिंह ने खुद को 'राज राजेश्वर महाराजाधिराज महाराज श्री' की पदवी के साथ जालौर का महाराजा घोषित कर दिया। इससे नाराज भीम सिंह ने मान सिंह अपदस्थ करने के लिए जालौर फौज भेज दी लेकिन मांडोली के युद्ध में जोधपुर की फौज को हार का सामना करना पड़ा। हालांकि मान सिंह ने बातचीत के जरिए जोधपुर के शासकों के साथ रिश्ते जल्द ही ठीक कर लिए और बाद में यही मान सिंह भीम सिंह की मौत के बाद 1803 में मारवाड़ के शासक बने।1843 में मान सिंह की मौत के बाद से आज़ादी तक जालौर, भीनमाल और सांचौर परगना मारवाड़ स्टेट के अधीन ही रहे। मानसिंह ने 6 जनवरी1818 की संधि के तहत ब्रिटिश अधिनायकता को स्वीकार कर लिया। मानसिंह के शासन में मारवाड़ आधुनिक दौर में प्रवेश करने लगा।

मानसिंह की जालौर या भीनमाल क्षेत्र में सबसे बड़ी निशानी है कोट कास्ता का किला। दरअसल मारवाड़ की राजगद्दी मिलने पर मानसिंह ने नाथों को अपना गुरु माना और कोटकास्ता सहित 9 गांव नाथों को जागीरी में दे दिए। मानसिंह ने जोगी भीमनाथ को कास्ता गांव की जागीर दी और उनके सम्मान में एक विशाल दुर्ग का निर्माण करवाया। भीमनाथ ने बाद में यहां एक परकोटा बनवाया जिसके पास एक गांव बस गया जो कोट कहलाने लगा। कालांतर में दोनों गांव सम्मिलित रूप से कोट कास्ता कहलाने लगे। भीनमाल शहर से करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह भव्य किला वर्तमान में खस्ताहाल में ही है। कोट कास्ता इलाके में पिछले कई सालों से बड़े पैमाने पर खनन हो रहा है।

मानसिंह के दौर में ही मशहूर इतिहासकार जेम्स टॉड ने अपने ऐतिहासिक ग्रन्थ 'एनल्स एंड एंटीक्विटीज ऑफ राजस्थान' लिखा कि भीनमाल में 15 सौ घर आबाद हैं। टॉड के मुताबिक यहां बहुत धनी महाजन या व्यापारी निवास करते थे लेकिन उनकी असुरक्षा की भावना ने इस शहर को बहुत नुकसान पहुंचाया। उन्होंने यहां वाराह मंदिर का उल्लेख करते हुए लिखा है कि भीनमाल के साथ 'माल' शब्द इसकी आर्थिक सम्पन्नता के कारण जुड़ा हो। टॉड ने भीनमाल की जनसंख्या 4545 बताई थी (सन 1820 के आसपास)।

शायद 1880 के दशक में भीनमाल के स्थान पर जसवंतपुरा परगना बना दिया गया। दरअसल सिरोही स्टेट की सीमा पर स्थित लोहियाणा नामक जगह का जागीरदार और उसके वफादार भील लगातार उपद्रव मचा रहे थे। इससे परेशान होकर महाराजा जसवंत सिंह द्वितीय ने सन 1883-84 में लोहियाणा को नेस्तनाबूद कर इसके स्थान पर 'जसवंतपुरा' नाम से एक व्यवस्थित कस्बा बसा दिया। और जसवंतपुरा को भीनमाल के स्थान परगना/हकूमत का दर्जा दे दिया। देश की आज़ादी तक यहां हाकिम/हाकम बैठता था। देश की आज़ादी के बाद आधुनिक जालौर जिला जब अस्तित्व में आया तो इसके दो सब-डिवीजन जालौर और भीनमाल बनाए गए और तीन तहसीलें; जालौर, जसवंतपुरा और सांचौर। भीनमाल शहर और इसके आसपास का क्षेत्र जसवंतपुरा तहसील के अधीन ही था लेकिन सन 1961 में जसवंतपुरा से तहसील कार्यालय को भीनमाल शिफ्ट कर दिया गया और तहसील का नाम भी बदल भीनमाल कर दिया गया।

बात आधुनिक काल के भीनमाल से जुड़े एक और पहलू की। आज़ादी से कुछ साल पहले और ठीक बाद के सालों में भीनमाल के वैश्य (खासकर जैन) समुदाय ने व्यापार के सिलसिले में दक्षिण भारत और विशेषकर मुम्बई का रुख करना शुरू कर दिया। भीनमाल के कई वैश्य परिवारों ने रियल एस्टेट के व्यवसाय में हाथ डाला और देखते ही देखते इन्होंने रियल एस्टेट के क्षेत्र में साम्राज्य खड़ा कर दिया। हालांकि माफिया/डॉन/अंडरवर्ल्ड और दूसरे तमाम झमेलों की वजह से बिल्डर लाइन सबसे कठिन धंधों में से एक था लेकिन भीनमाल से निकले करीब एक दर्जन सेठ तमाम चुनौतियों से जूझते हुए मुंबई के बड़े बिल्डर्स में शामिल हो गए। बिल्डर लाइन में दशकों से इनका बड़ा नाम है।

कुछ नाम -
1. सुमेर ग्रुप - सुमेरमल हंजारीमल लुंकड़ के परिवार द्वारा संचालित इस समूह ने सेंट्रल मुंबई और इसके उपनगरीय इलाकों में कई सारी आवासीय इमारतें खड़ी की हैं।

2. गोवाणी समूह - घमंडीराम गोवाणी द्वारा शुरू किए गए इस समूह ने साउथ मुंबई में कुछ मशहूर आवासीय टॉवर खड़े किए। कमला मिल्स जैसे चर्चित कई और कंपाउंड्स को खरीदा।

3. नाहर ग्रुप - सुखराज नाहर द्वारा स्थापित इस समूह ने मुंबई में कई सारे आवासीय एवं व्यावसायिक कॉम्प्लेक्स खड़े किये हैं।

4. किंजल कंस्ट्रक्शन - हीरालाल दोशी के स्वामित्व वाली इस फर्म ने भायखला, परेल आदि इलाकों में आवासीय इमारतें खड़ी की।

5. संघवी ग्रुप - सांकलचंद जैन द्वारा स्थापित इस समूह का भी रियल एस्टेट सेक्टर में बड़ा नाम है।

6. वर्धमान ग्रुप - सेठ मिश्रीमल जवाहरमल वर्धन द्वारा स्थापित और रमेश वर्धन एवं राजेश वर्धन के स्वामित्व वाले इस समूह ने भी कई सारे आवासीय टॉवर, मॉल्स और दूसरे व्यवसायिक परिसर बनाए हैं।

7. नीलम रियल्टर्स - चंपालाल वर्धन द्वारा स्थापित यह फर्म ने कई सारे आवासीय प्रोजेक्ट्स के साथ-साथ वर्ली की अतरिया मॉल और दादर के प्राइम मॉल की बिल्डिंग्स खड़ी की।

8. जोगाणी ग्रुप- घेवरचंद जोगाणी द्वारा स्थापित इस समूह की गिनती भी बड़े बिल्डर्स में होती है।

9. एसपी सेठ - मुम्बई में एक समय के मशहूर हीरा पन्ना शॉपिंग सेंटर के भागीदार।

इतना ही नहीं, रियल एस्टेट सेक्टर में बहुत बड़े नाम वाले लोढ़ा ग्रुप के संस्थापक, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के भागीदार, देश के सबसे हाई प्रोफाइल विधानसभा क्षेत्रों में से एक मालाबार हिल विधानसभा क्षेत्र (जहां देश के सबसे ज्यादा धनाढ्य लोग रहते हैं) से सन 1995 से लगातार चुनाव जीतते आ रहे 'मंगलप्रभात लोढ़ा' का भी रिश्ता भीनमाल से है। मंगलप्रभात लोढ़ा का विवाह लुंकड़ समूह के शाह किशोरमल हंजारीमल की पुत्री मंजू के साथ दिसम्बर1978 में हुआ।

रियल एस्टेट ही नहीं भीनमाल के सेठों ने दूसरे धंधों के जरिये भी खूब दौलत कमाई। एक उदाहरण कोठारी परिवार (भीनमाल में कीर्तिस्तंभ वाले) की फर्म 'रिद्धि सिद्धि बुलियन्स' है जो सबसे भारत के सबसे बड़े बुलियन डीलर (सोने-चांदी की ईंटों के कारोबारी) में से एक है। और भी कई नाम हैं।

इनमें से अधिकतर सेठों के बड़े-बड़े घर भीनमाल की माघ कॉलोनी में बने हुए हैं जिसे 'मिनी बॉम्बे' कहा जाता है। अधिकतर घर साल के अधिकतर समय तालाबंद रहते हैं। ये सेठ लोग दो प्रमुख अवसरों पर भीनमाल आते हैं; शादी और धार्मिक आयोजन।

भीनमाल के सेठों ने भी बड़े पैमाने पर स्थानीय लोगों को मुम्बई और दूसरे शहरों में को रोजगार दिया। कभी बेहद मामूली नौकरी करने वाले इन गैर-वैश्य स्थानीय लोगों में से बड़ी संख्या में 'मारवाड़ी आंतरप्रेन्योरशिप' के हुनर के चलते आज सेठ बन गए है। उन्हें ये सेठ 'लोक' कहते हैं।

तमाम मारवाड़ियों की तरह भीनमाल के सेठ लोग अपनी जड़ों को भूले नहीं। इन सभी ने भीनमाल शहर को बहुत कुछ दिया है। मसलन गोवाणी परिवार ने साल 1969 में भीनमाल में जिले का पहला कॉलेज भवन बनवाया (जालौर और भीनमाल में सन 1966 में कॉलेज स्वीकृत हुए थे)। लुंकड़ परिवार ने बहुत सारे सरकारी दफ्तरों के भवन बनवाए और अभी हाल ही में 72 जिनालय के नाम से मशहूर एक जैन तीर्थ स्थल भी। नाहर परिवार ने अस्पताल आदि बनवाए। बाकी सेठों का योगदान भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

भीनमाल से जुड़े कुछ अपुष्ट तथ्य -

1. वर्तमान गुजरात में बसी जैन, वैष्णव, सुनार, नागर, ब्राह्मण आदि जातियों का उद्गम भीनमाल शहर से है।

2. कनबी/कलबी/पिटल जाति का आगमन प्रारम्भिक मध्यकाल (छठी से दसवीं सदी के बीच का काल) में गुजरात से भीनमाल के इलाके में हुआ। वर्तमान जालौर जिले में यह सबसे बड़े जाति समूह में एक है जिसका जिले की सियासत पर भी लंबे समय से बड़ा प्रभाव रहा है।

3. ओसवाल जैन भी छठी शताब्दी में भीनमाल से ओसियां शिफ्ट हुए

4. भीनमाल और पूरे जालौर जिले पर गुर्जरदेश से लेकर आधुनिक समय तक गुजरात का बड़ा प्रभाव रहा है। और इसका असर जिले की लोक-संस्कृति, बोली आदि पर साफ दिखाई देता है। यहां की प्रमुख बोली को मरु-गुर्जरा कहा जा सकता। बोली की बात करें तो यहां 2 बोलियों में बड़ा फर्क देखा जा सकता है। एक बोली जो यहां की अधिसंख्य आबादी बोलती है। दूसरी, जो बीकानेर, मारवाड़ (खासकर फलौदी, ओसियां, लोहावट, बाड़मेर आदि के खालिस रेगिस्तान हिस्से से) से आकर करीब 150 साल पहले यहां बसी बिश्नोई, जाट जातियां और उनके साथ आया जाटव मेघवाल, सुथार, नाई, लुहार, गवारिया, ढाढ़ी आदि जातियों का एक विशेष समूह बोलता है। इस समूह का पहनावा भी जाट-बिश्नोईयों के बहुत करीब रहा है।

भीनमाल शहर से जुड़ा हमारे पूर्वजों का भी एक किस्सा है। बाड़मेर से आकर जालौर जिले में बसे हमारे पूर्वज थोड़े लड़ाकू एवं जिद्दी किस्म के हुआ करते थे और इन्हीं आदतों के चलते उनका अक्सर पेशी के चक्कर में जसवंतपुरा तहसील जाना (पैदल, करीब 80 किमी) होता था. बार-बार पेशी के चक्कर काटते देख जसवंतपुरा तहसील के तत्कालीन 'हाकम' को हमारे बुजुर्गों पर तरस आ गया। बताते हैं एक दिन ये सजातीय हाकम साहब (उस दौर में हाकम के बड़े जलवे होते थे) खुद हमारे गांव आ पहुंचे। उन्होंने बुजुर्गों को समझाया कि, "क्यों यहां झगड़ते हो? जमाना बदल चुका है, भीनमाल जमीन दिलवा देता हूं और वहां जाकर अपने बच्चों को पढ़ाओ।" बुजुर्गों को लगा कि ये हाकम पढ़-लिखकर पागल हो गया है। "भीनमाल तो आळमाळ है, हुवारे धुड़ जई" यानि, भीनमाल तो आलमाल है, कल नष्ट हो जाएगा। वही भीनमाल के बार-बार नष्ट होने वाली कहानी की दलील के साथ बुजुर्गों/पूर्वजों ने इस शुभचिंतक हाकम की बात नहीं मानी। बताते हैं कि बाद में इस हाकम ने देश और प्रदेश की सियासत में बड़े-बड़े मुकाम हासिल किये।

खैर, इतिहास संरक्षण को लेकर प्रशासन और स्थानीय जनता में कोई खास रुचि दिखाई नहीं देती। भीनमाल के प्राचीन शिलालेख काल के ग्रास बन चुके हैं। नई खोजों, उत्खनन के लिए सरकार के पास फंड नहीं है, लोगों और विद्यार्थियों की इसमें कोई खास रुचि नहीं है।

(प्रस्तुत कई तथ्यों को लेकर मैं खुद आश्वस्त नहीं हूं। corrections का तहेदिल से स्वागत। बिल्डर्स वाली स्टोरी के कुछ तथ्य टाइम्स समूह के अखबार 'Mumbai Mirror' में 25 फरवरी 2018 को छपे एक लेख 'RAJASTHAN’S MINI MUMBAI' से लिये गये हैं। इस लेख में भीनमाल के साथ-साथ सुणतर इलाके के मालवाड़ा और आसपास के 9 गांवों से निकले उन बड़े सेठों का भी जिक्र है जिन्होंने 'बिल्डर लाइन' की जगह 'सिविल कांट्रेक्टर लाइन' को चुना और देखते ही देखते BMC एवं PWD के बहुत बड़े ठेकेदार बन गये।

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